मैं जब भी जहाँ कहीं जाता हूँ तुम रहती हो मेरे साथ जब मैं सड़कों पर होता हूँ घर बाजार या किसी भी काम में होता हूँ तुम्हारी समीपता को महसूस करता हूँ हर बार वापस घर लौटकर कमरे के अपने एकांत में तुम्हारी कोमल यादों के सहारे गुलाब सा महकता हूँ
हिंदी समय में अखिलेश्वर पांडेय की रचनाएँ